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अगर आप मछली पालन को व्यवसाय के रूप में करना चाहते हैं और आपके पास जगह कम है तो बायोफ्लॉक विधि से मछली पाल सकते हैं। इस विधि में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है,courtesy-Gaon connectionn

धर्मवीर सिंह पिछले एक साल से कम जगह और कम पानी में ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन ले रहे है। उनकी इस विधि के इस्तेमाल से पानी की बचत तो हो रही है साथ वह लाखों की कमाई भी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में लखनऊ जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर बाबूखेड़ा गाँव में रहने वाले धर्मवीर सिंह बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन कर रहे हैं। बायोफ्लॉक मछली पालन में एक नई विधि है। इसमें टैंकों में मछली पाली जाती है। टैंकों में मछलियां जो वेस्ट निकालती है उसको बैक्टीरिया के द्वारा प्यूरीफाई किया जाता है। यह बैक्टीरिया मछली के 20 प्रतिशत मल को प्रोटीन में बदल देता है। मछली इस प्रोटीन को खा लेती हैं। बायोफ्लॉक: मछली पालन की इस विधि में कम पानी, कम जगह में ले ज्यादा उत्पादन मछली पालन की इस तकनीक के बारे में धर्मवीर आगे कहते हैं, "इस तकनीक में पानी की बचत तो है ही साथ ही मछलियों के फीड की भी बचत होती है। मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी वेस्ट निकालती है और वो वेस्ट उस पानी के अंदर ही रहता है और उसी वेस्ट को शुद्व करने के लिए बायो फ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है जो बैक्टीरिया होता है वो इस वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिसको मछली खाती है तो इस तरह से 1/3 फीड की सेविंग होती है।" यह भी पढ़ें- दवाओं के सही इस्तेमाल से बढ़ा सकते हैं मछली का उत्पादन नेवी से रिटायर होने के बाद धर्मवीर ने नई तकनीक का प्रशिक्षण लिया। उसके बाद दो टैंकों से इस विधि से मछली पालन करना शुरू किया। धीरे-धीरे मुनाफा बढ़ने के बाद उन्होंने आठ टैंक बना लिए। धर्मवीर बताते हैं, "मेरे पास आठ टैंक है एक टैंक तीन मीटर डाया का है ,जिसमें 7 हजार 500 लीटर पानी आता है। इसमें करीब पांच कुंतल मछलियां पैदा कर लेते है। एक बार टैंक में पानी भर गया तो पूरा कल्चर इसी में हो जाता है। ज्यादा से ज्यादा 100-200 लीटर पानी डालना पड़ता है। " तालाब और बायोफ्लॉक (biofloc) तकनीक में अंतर के बारे में धर्मवीर बताते हैं, "तालाब में सघन मछली पालन (fish farming) नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डाली तो तालाब का अमोनिया बढ़ जाएगी तालाब गंदा हो जाएगा और मछलियां मर जाऐंगी। जबकि इस सिस्टम में आसानी से किया जा सकता है। इस तकनीक में फीड की काफी सेविंग होती है। अगर तालाब में फीड की तीन बोरी खर्च होती है तो इस तकनीक में दो बोरी ही खर्च होंगी।" अपना बायोफ्लॉक फार्म दिखाते किसान धर्मवीर सिंह। फोटो- अभिषेक वर्मा बायो फ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी वो टैंक के साइज के ऊपर होता है। टैंक का साइज जितना बड़ा होगा मछली की ग्रोथ उतनी ही अच्छी होगी और आमदनी भी उतनी अच्छी होगी। टैंकों में आने वाले खर्च के बारे में सिंह बताते हैं, एक टैंक को बनाने में 28 से 30 हजार रुपए का खर्चा आता है जिसमें उपकरण और लेबर चार्ज शामिल है। टैंक को साइज जितना बढ़ेगा कॉस्ट बढ़ती चली जाएगी। " यह भी पढ़ें- मछलियों में होने वाली यह बीमारियां मछली पालकों का करा सकती है घाटा इस विधि से धर्मवीर सिंह को जहां मुनाफा हो रहा है वहीं इसमें कुछ दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है।बायो फ्लॉक सिस्टम में आने वाली समस्याओं के बारे में धर्मवीर बताते हैं, "इस सिस्टम में पानी के तापमान को नियंत्रित करने की बड़ी समस्या होती है क्योंकि हर मछली अलग-अलग तापमान में रहती है। उदाहरण के लिए पंगेशियस। यह मछली ठंडे पानी में नहीं रह पाती है तो उसके लिए पॉलीशेड और तापमान को नियंत्रित करने की व्यवस्था बनानी पड़ती है। इस वजह से थोड़ी दिक्कत आती है।" इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की जरुरत इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टीरिया है जिसको 24 घंटे हवा की जरुरत होती है तभी वह जीवित रहता है। धर्मवीर बताते हैं, "इस सिस्टम को बिना बिजली के नहीं चलाया जा सकता है। मैंने चार टैंक के लिए एक इनवेटर लगा रखा है।" इस तकनीक से कम होगा नुकसान मछली पालकों को तालाब की निगरानी रखनी पड़ती है क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं जबकि बायो फ्लॉक वाले जार के ऊपर शेड लगाया जाता है। इससे मछलियां मरती भी नहीं है और किसान को नुकसान भी नहीं होता है। पानी और बिजली की कम खपत एक हेक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में छोड़ा जा सकता है।


TROLLEY PUMP

अगर किसानों को अपनी आमदनी में इजाफ़ा करना है, तो खेतीबाड़ी में आधुनिक कृषि यंत्रों (Agricultural machinery) का उपयोग करना ज़रूरी है. इससे फसल की गुणव्तता और उत्पादन, दोनों अच्छा प्राप्त होता है. इससे आमदनी में भी बढ़ोत्तरी होती है. आज के समय में कई किसान आधुनिक तकनीक से बने नवीन कृषि यंत्रों (Agricultural machinery) का उपयोग कर रहे हैं, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफ़ा भी मिल रहा है. आइए आपको एक ऐसे ही कृषि यंत्र की जानकारी देने वाले हैं, जिसका खेती में उपयोग करके कम श्रम और लागत में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है.

ट्रॉली पंप (Trolley pump)

इस कृषि यंत्र का नाम ट्रॉली पंप है, जो कि खेतीबाड़ी में बहुत उपोगी माना जाता है, तो आइए आपको ट्रोली पंप कृषि यंत्र से जुड़ी ज़रूरी जानकारी देते हैं.

ट्रॉली पंप की खासियत (Features of trolley pump)

यह कृषि यंत्र को उन किसानों के लिए बहुत उपयोगी होता है, जिनके पास खेती करने के लिए कई बीघा जमीन होती है. इस मदद से कीटनाशक का छिडक़ाव कर सकते हैं. इससे श्रम और समय, दोनों की अच्छी बचत होती है. इसके अलावा फसल की गुणवत्ता और उत्पादन भी बढ़ता है.